फूलपुर गाँव में आने के बाद रमेश, रेखा और उनके दोनों बच्चों का दिल बाग़-बाग़ हो गया था. चारों तरफ़ हरियाली थी, और चिड़ियों की चहचहाट कानों में रस घोल रही थी. वे लोग वहाँ की सादगी और सौम्यता से बहुत प्रभावित हुए थे. पहाड़ की गोद में नदी-नालों के बीच बसा हरियाली की चादर ओढ़े हुए, फूलपुर गाँव ने रमेश के परिवार को, जैसे सम्मोहित कर दिया था. पेड़-पौधों को स्पर्श करती ताज़ी हवा की मधुर आवाज़, झरने से गिरते पानी के कोलाहल और चिड़ियों की चहचहाट के बीच एक अद्भुत और अकल्पनीय शांति थी.
दरअसल रमेश और उसकी पत्नी रेखा फूलपुर गाँव से कोसों दूर ज़िला मुख्यालय शेरपुर के एक सरकारी स्कूल में टीचर हैं. चंद दिनों पहले विभाग ने उनका ट्रांसफर फूलपुर गाँव में कर दिया था. आज रमेश अपने परिवार के साथ जॉइनिंग से पहले फूलपुर गाँव देखने आया था. रमेश की पत्नी और बच्चों को गाँव और फूलपुर के लोग बहुत पसंद आए थे. बच्चों ने भी यहाँ की हरी-भरी वादियों और ख़ुशमिज़ाज लोगों से इतनी आत्मीयता महसूस की कि वे मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह पाए. रेखा ने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर इस प्रदुषण मुक्त गाँव में रहे तो उनकी उम्र दस साल और बढ़ जाएगी.
गाँव के लोग भी उनके आने से बहुत ख़ुश थे. उन्हें लग रहा था कि शहर से दो अच्छे टीचर उनके गाँव आ रहे हैं. उनके बच्चों का भविष्य उज्जवल होगा. उन्हें उम्मीद थी कि रमेश और रेखा जैसे अनुभवी शिक्षकों के आने से उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी. गाँव के लोग भी रमेश और रेखा का स्वागत करने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ रहे थे.
शाम कब हो गई, पता ही नहीं चला. उन्हें वापस शहर जाना था. लेकिन हंसते-खेलते और मुस्कुराते हुए मेहमान नवाज़ लोग, उनकी मीठी बातों और मनोरम प्राकृतिक नज़ारे ने मानो उनके पैर जकड़ लिए हों. ट्रेन का टाइम हो गया था. इसलिए भारी मन से रमेश का परिवार न चाहते हुए भी स्टेशन की तरफ़ चल पड़ा.
फूलपुर गाँव के सरपंच सहित कई लोग उन्हें स्टेशन छोड़ने आए थे. रमेश परिवार सहित ट्रैन में सवार हो गया. गार्ड ने गाड़ी स्टार्ट करने के लिए सीटी बजा दी थी. रमेश ख़ामोश और चिंतित सा किसी ख़्यालों में डूबा हुआ नज़र आ रहा था. साफ़ लग रहा था कि उसके मन में कहीं न कहीं उथल-पुथल चल रही है. तभी सरपंच जी ने ख़ामोशी तोड़ते हुए रमेश से कहा कि, सर आप लोगों को यहाँ कोई तकलीफ़ नहीं होगी. हम आप के रहने के लिए अच्छा सा मकान ढूंढ़ रहे हैं.
सरपंच जी ने रमेश की तरफ़ सवालिया नज़रों से देखते हुए पुछा, आप लोग ज्वाइन करने के लिए कब आ रहे हैं?
सॉरी सरपंच जी, मुझे लगता है कि मैं यहाँ ज्वाइन नहीं कर पाऊंगा. रमेश की आवाज़ लड़खड़ा रही थी.
सरपंच जी रमेश की बात सुन कर चौंक पड़े.
क्या हुआ सर?
हम से कोई ग़लती हो गई क्या?
नहीं ऐसी कोई बात नहीं है. आप लोग बहुत अच्छे हैं, और यहाँ का वातावरण भी अद्भुत है.
फिर क्यों….? सरपंच जी की आवाज़ गले में अटक रही थी.
सरपंच जी बात दरअसल ये है कि आप के इलाक़े में कोई ढंग का प्राइवेट स्कूल नहीं है, जहाँ मेरे बच्चे पढ़ सकें. माफ़ कीजिए मेरे बच्चों के भविष्य का सवाल है. मैं अपने बच्चों का भविष्य ख़राब नहीं करना चाहता.
ट्रैन चल पड़ी थी और धीरे-धीरे रफ़्तार पकड़ रही थी.
रमेश की बात सुनकर सरपंच जी सहित गाँव वाले स्तब्ध रह गए. रमेश के बच्चे खिड़की से गांव वालों को हाथ हिला कर बाय बोल रहे थे, लेकिन ऐसा लग रहा था कि गाँव वालों के बाज़ू शल हो चुके हों. उनकी आँखों में निराशा के साथ-साथ आश्चर्य की झलक साफ़ नज़र आ रही थी. उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे रमेश और रेखा के साथ-साथ उनकी उम्मीदें और सपने भी उनसे दूर जा रहे हैं.
सरपंच जी के मन में कई सवाल उठ रहे थे.
क्या प्राइवेट स्कूलों के टीचर सरकारी स्कूलों के टीचर से ज़्यादा क़ाबिल होते हैं?
सरकारी स्कूल की शिक्षा की क्वालिटी ख़राब है, तो इसका ज़िम्मेदार कौन है?
अगर सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के बच्चों का भविष्य प्राइवेट स्कूलों में है, तो ये हमारे ही पैसों से मोटी तनख़्वाह लेकर हमारे बच्चों का भविष्य क्यों ख़राब कर रहे हैं?
सरकारी स्कूलों के टीचर से कई गुणा कम वेतन पाने वाले, प्राइवेट स्कूलों के टीचर, जिनका अपना भविष्य सुरक्षित नहीं है, वे लोग बच्चों का भविष्य कैसे बेहतर बनाते हैं?
आख़िर सरकारी स्कूलों के टीचर इतनी अच्छी तनख्व़ाह और दूसरी सुविधाएँ पा कर भी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण तालीम क्यों नहीं दे पाते हैं?
सवाल तो उनके मन मस्तिष्क में कई उठ रहे थे, मगर जवाब कौन देता?
सरकारी शिक्षक दंपत्ति तो अपनी आँखों में अपने बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना सजाए, नज़रों से ओझल हो चुके थे.
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