भारत जलवायु प्रतिबद्धताओं के साथ आर्थिक विकास को संतुलित कर रहा है: नीति आयोग के सीईओ

नई दिल्ली, 12 सितम्बर (केएनएन): नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि और उसकी जलवायु प्रतिबद्धताओं के बीच जटिल संबंधों पर बात की।

 

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत जलवायु अनुकूल विकास के लिए प्रतिबद्ध है, तथापि जीवाश्म ईंधन देश के आर्थिक विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

 

सुब्रह्मण्यम ने हरित ऊर्जा अवस्थांतर के लिए एक व्यापक रोडमैप विकसित करने के लिए राज्यों के साथ नीति आयोग के चल रहे सहयोग पर प्रकाश डाला। इस पहल का उद्देश्य भारत के शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक रास्ता तैयार करना है।

 

इस रणनीति का विस्तृत विवरण देने वाला दस्तावेज़ नवंबर में जारी होने की उम्मीद है।

 

सीईओ ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए अकेले बाजार की ताकतें अपर्याप्त हैं।

 

उन्होंने कहा कि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 4 प्रतिशत से भी कम योगदान देने के बावजूद भारत 2015 के पेरिस समझौते के तहत अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

 

भारत ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के हिस्से के रूप में 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने और 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली क्षमता स्थापित करने का संकल्प लिया है।

 

सुब्रह्मण्यम ने यह भी बताया कि भारत सरकार जलवायु वित्त को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है, भले ही देश की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत वैश्विक औसत की आधी ही है।

 

वह जलवायु परिवर्तन को भारत के लिए हरित प्रौद्योगिकी और टिकाऊ विकास मॉडल में अग्रणी के रूप में उभरने के अवसर के रूप में देखते हैं।

 

हालांकि, नीति आयोग प्रमुख ने राज्य स्तर पर चुनौतियों को स्वीकार किया तथा कहा कि कई राज्यों में हरित परियोजनाएं सृजित करने में विशेषज्ञता का अभाव है।

 

यह अवलोकन आर्थिक विकास को बनाए रखते हुए भारत के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वित प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

(केएनएन ब्यूरो)

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