क्या मुस्लिम रेजीमेंट ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ने से मना कर दिया था?

परम वीर अब्दुल हमीद (Abdul Hamid) की पुण्यतिथि पर विशेष

कृष्ण कांत

भारत जब अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, उसी दौरान 1933 में यूपी के गाजीपुर में एक लड़का पैदा हुआ. नाम था अब्दुल हमीद. ये बच्चा बड़ा होकर भारतीय सेना में भर्ती हो गया.

8 सितंबर, 1965 भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है. पंजाब के खेमकरण क्षेत्र के चीमा गांव के पास कपास और गन्ने के खेतों में कुछ जवान छुपे हुए हैं. उन्हें पाकिस्तानी पैटन टैंकों की गड़गड़ाहट सुनाई देती है. सड़क से करीब 30 मीटर की दूरी पर अब्दुल हमीद (Abdul Hamid) कपास के पौधों के बीच एक जीप में अपनी गन के साथ छिपे हैं. उन्हें कई पाकिस्तानी टैंक दिखाई देते हैं. जैसे ही पहला टैंक अब्दुल हमीद की शूटिंग रेंज में आया, उन्होंने अपनी आरसीएल गन झोंक दी. टैंक में आग लग गई.

पहले टैंक में आग लगते ही कर्नल हरिराम जानू ने देखा कि पीछे आ रहे टैंकों के ड्राइवर उन्हें बीच सड़क पर छोड़कर भाग गए. आरसीएल गन सिर्फ़ एक-दो या ज़्यादा से ज़्यादा तीन फ़ायर किए जा सकते हैं. फिर भी हमीद ने दूसरा टैंक भी ध्वस्त कर दिया.

अगले दिन पाकिस्तानियों ने टैंकों की मदद से तीन हमले किए. अब्दुल हमीद और हवलदार बीर सिंह ने मिलकर दो-दो टैंक और तबाह किए. 10 सितंबर को पाकिस्तान ने जबरदस्त गोलाबारी शुरू की. भारतीय सैनिक हमले के इंतजार में थे. अचानक उन्हें टैंकों की आवाज़ सुनाई पड़ी. हमीद की नज़र टैंक पर तब पड़ी जब वह उनसे 180 मीटर दूर पहुंच चुका था. हमीद ने टैंक पास आने दिया और फिर उस पर सटीक निशाना लगाया. टैंक जलने लगा. हमीद तेज़ी से अपनी जीप को दूसरी तरफ़ ले गए ताकि दुश्मन उनकी लोकेशन पता न कर सके.

कर्नल जानू ने हमीद से कहा कि वे बाकी टैंकों पर फ़ायर न करें. जब ये टैंक इनकी पोज़ीशन के ऊपर से गुज़र गए तो हमीद ने पीछे से निशाना लगाकर उसे तबाह किया. हमीद तीसरे टैंक पर निशाना लगा रहे थे तभी उन्हें देख लिया गया. दोनों तरफ से एक साथ ट्रिगर दबा. दो गोले फटे. हमीद का गोला टैंक पर लगा और टैंक के गोले ने हमीद की जीप को उड़ा दिया.

हमीद के ड्राइवर थे मोहम्मद नसीम. उनकी जुबानी, ‘हमीद की उंगली ट्रिगर पर थी कि उधर से पाकिस्तानी टैंक का गोला आ गया. वो सीधा हमीद के शरीर पर लगा और उनके जिस्म का ऊपरी हिस्सा कटकर दूर जा गिरा. मैं दौड़ता-दौड़ता कर्नल रसूल के पास गया. मैंने उनको बताया कि हमीद ख़त्म हो गए. उन्हें मेरी बात पर यकीन नहीं हुआ. मैंने सामने पड़े मलबे में हाथ डाला, तो मेरा हाथ हमीद की पसलियों में घुस गया. थोड़ी-थोड़ी दूर पर उनके शरीर के दूसरे अंग पड़े थे. हमने सबको इकट्ठा किया और वहीं गडढ़ा खोदकर उन्हें दफ़नाया.’

लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई थी. पाकिस्तान की तरफ से तीन आरसीएल जीप आती हुई दिखाई दीं. लाइट मशीन गन पोस्ट पर खड़े शफ़ीक, नौशाद और सुलेमान ने बिना फ़ायरिंग आदेश का इंतज़ार किए उन पर फ़ायरिंग कर दी. पहली जीप में सवार सभी पाकिस्तानी सैनिक मारे गए लेकिन तीसरी जीप तेज़ी से वापस मुड़ी और भागने में सफल रही.

इधर लड़ाई चल ही रही थी कि भारतीय सैनिकों ने पास की एक नहर का किनारा काट दिया जिससे पूरे इलाके में पानी भर गया. उस इलाके में जितने टैंक थे, वहीं फंस गए. पाकिस्तानी टैंकों की संख्या इतनी ज़्यादा थी कि कर्नल सालेब ने पैटन टैंकों पर पेंट से गिनती लिखने को कहा. पाकिस्तान ने सोचा नहीं था कि भारत ऐसी तरकीब का इस्तेमाल करेगा. 11 सितंबर को खेमकरण में पाकिस्तान की ओर से हमला रोक दिया गया.

भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कुल 94 टैंक तबाह किए. इनमें से सात टैंक अकेले अब्दुल हमीद ने बर्बाद किए थे. अब्दुल हमीद ने इस युद्ध में बेमिसाल बहादुरी दिखाई थी. उन्हें भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से नवाज़ा.

पिछले साल वॉट्सएप विषविद्यालय में फैलाया गया कि ‘भारतीय सेना की मुस्लिम रेजीमेंट ने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने से मना कर दिया था’. हमेशा की तरह विषविद्यालय का एक झूठ था. भारतीय सेना में ऐसी कोई रेजिमेंट कभी थी ही नहीं.

भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल रामदास समेत क़रीब 120 सेवानिवृत्त सेना अधिकारियों ने राष्ट्रपति को ख़त लिखकर इसके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की मांग की.

अधिकारियों ने लिखा, “भारतीय सेना की कई रेजिमेंट्स में मौजूद मुस्लिम सैनिक देश के लिए बहादुरी से लड़े हैं. बाकी सैनिकों के अलावा 1965 की लड़ाई में सम्मान पाने वालों में हवलदार अब्दुल हमीद (परमवीर चक्र), ले. कर्नल मोहम्मद जकी (वीर चक्र), मेजर अब्दुल राफे खान (वीर चक्र) शामिल हैं. इससे पहले भारत की आजादी के वक्त 1947 में बलूच रेजिमेंट के ब्रिगेडियर रहे मोहम्मद उस्मान ने कश्मीर में पाकिस्तान को घुसने से रोकने के लिए अपनी जान दे दी. वह 1948 में शहीद होने वाले सबसे सीनियर अधिकारी थे.”

पैंसठ की ही लड़ाई में मोहम्मद शफीक और मोहम्मद नौशाद के किस्से में मशहूर हैं. इन दो ही जवानों ने मिलकर पाकिस्तानी सैन्य दल पर ऐसा ताबड़तोड़ हमला किया था कि उनकी डिवीजन का जनरल मारा गया और पाकिस्तानी सेना अपने ही टैंक खुद जलाकर भाग गई थी.

भारतीय सेना अपने जवानों के साथ धर्म के आधार पर कोई बर्ताव नहीं करती, न ही धर्म के आधार पर किसी की उपलब्धियां गिनाई जाती हैं. वहां पर हर जवान भारत के लिए शहीद होता है. यहां सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों का कारोबार देश के नागरिकों के दिमाग नफरत का कचरा भर रहा है.

अगर इस देश की माटी को कुरेदा जाए तो आप पाएंगे कि ये माटी जिस खून से सींची गई है, वह खून बहुरंगी बहुधर्मी है. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई… सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में…

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ग़ज़नफ़र

नाम: ग़ज़नफ़र काम: पत्रकार, लेखक, शोधकर्ता और कंसलटेंट संक्षिप्त परिचय: ग़ज़नफ़र सिर्फ एक पत्रकार, अनुवादक या शोधकर्ता नहीं हैं. वे सच की आवाज़ हैं. शब्दों के हथियार से लैस होकर, वह अन्याय के ख़िलाफ़ खड़े होते हैं और आम आदमी की कहानियों को दुनिया तक पहुंचाते हैं. ग़ज़नफ़र की शोध प्रक्रिया, सच्चाई की तलाश में एक गहन ग़ोता लगाने जैसी है. डेटा के विश्लेषण से लेकर सूत्रों के सत्यापन तक, वह हर पहलू को बारीकी से जांचते हैं. ग़ज़नफ़र की लेखनी, पत्रकारिता के दायरे से आगे, भाषा के पुलों का निर्माण करती है. उनकी अनुवाद क्षमता विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच समझ और संवाद का मार्ग प्रशस्त करती है. उनकी लेखनी में गंभीरता के साथ संवेदनशीलता का मेल है, जो पाठकों को न सिर्फ जानकारी देता है, बल्कि उन्हें सोचने और समझने के लिए प्रेरित भी करता है। अनुवाद के क्षेत्र में भी उनका दायरा व्यापक है, साहित्य से लेकर तकनीकी सामग्री तक, वह हर विषय को बारीकी से समझकर उसकी सार को दूसरी भाषा में प्रभावी ढंग से व्यक्त करते हैं। उन्होंने ने जटिल विषयों के अनुवाद और गहन शोध में अपनी निपुणता सिद्ध की है। उनकी कलम सच्चाई की तलाश को सांस देती है और कहानियों को न सिर्फ सूचना का प्रवाह, बल्कि एक मार्मिक अनुभव बनाती है।

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